गुरुकुल परिचय


|| ओ३म् कृण्वन्तो विश्वमार्यम् ||   – ऋग्वेद  ९/६३/५।।

   गुरुकुल अर्थात आचार्या-कुलम् या आचार्य-कुल सनातन काल से ऐसी प्राचीनतम शिक्षा-पद्धति है जो चरित्र-निर्माण मूलक रही है| गुरुकुल बालक/बालिका में विभिन्न वेद विद्याओं के अध्ययन स्थली के साथ व्यवहारिक ज्ञान और संस्कारों की निर्माण शाला भी होता है|  वैदिक संस्कृति और सभ्यता और जीवन शैली को अक्षुण्ण बनाये रखने में आर्ष गुरुकुल जैसी संस्थाएं अहम् भूमिका निभा रही हैं। वैदिक गुरुकुल सनातन, प्राचीन और ऋषि ज्ञान और विज्ञान का अद्भुत अध्ययन केंद्र हैं| गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली वेदोक्त है औरगुरुकुल में बालक/बालिका गुरु के कुल का अंग बनकर रहता है। बालक/बालिका जन्म देने वाले अपने पिता के छोटे परिवार से हटकर आचार की शिक्षा देने वाले आचार्य के वृहद परिवार का सदस्य बन जाता है।

   समग्र भारतवर्ष में विशिष्ट आर्ष पाठ्यक्रम से चलने वाले गुरुकुलों में आर्य कन्या गुरुकुल, शिवगंज, सिरोही (राजस्थान) का अपना विशिष्ट स्थान है।गुरुकुल का विशिष्ट पाठ्यक्रम पूर्ण आर्ष विद्या पर आधारित है|

   महर्षि दयानंद सरस्वती रचित सत्यार्थ-प्रकाश में निर्दिष्ट आर्ष पाठ्यक्रम के अनुसार अध्ययन-अध्यापन इस गुरुकुल की विशेषता है|गुरुकुल में आर्ष शिक्षा पद्धति सहित राजकीय संस्कृत बोर्ड एवं विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम के अनुसार अध्ययन कराया जाता है। क्योंकि गुरुकुल किसी शैक्षिक संस्था से सम्बद्ध नहीं है,इसलिए गुरुकुल को किसी सरकारी संस्था द्वारा मान्यता व अध्यापिकाओं के वेतन आदि भी प्राप्त नहीं हैं। भारत के सभी प्रान्तों की कन्यायें लगभग शत संख्या में जाति, वर्ग, सम्प्रदाय के भेद से रहित होकर यहाँ शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। यहाँ छठी (६) कक्षा से लेकर आचार्य (M.A) पर्यन्त शिक्षा दी जाती है|  यह गुरुकुल केवल बालिकाओं (लड़कियों / छात्राओं) के लिए ही है| प्राचीन गुरुकुल नियम व्यवस्था के अनुरूप बालकों (लड़कों) का और बालिकाओं का गुरुकुल भिन्न भिन्न दूर क्षेत्र में होना उत्तम है| गुरुकुल प्रणाली में आधुनिक सह-शिक्षा प्रणाली का प्रावधान नहीं है क्योंकि यह विद्यार्थी के संयमित जीवन में बाधक है| लड़कों (बालकों) के गुरुकुलों की  जानकारी के लिए संपर्क:->अन्य आर्ष गुरुकुल विकल्प सूची में देखें|

   गुरुकुल की स्थापना सन् 1988 (विक्रमी संवत् 2044) में स्वामी सुकर्मानन्द सरस्वती जी के कर कमलों से हुई और इस विशाल वट वृक्ष की संकल्पना का बीज बोया। गुरुकुल का संचालन एक न्यास (ट्रस्ट) द्वारा किया जाता है। कन्याओं का यह गुरुकुल 28 बीघा भूमि में विस्तृत है और यह अचल सम्पत्ति भूमि व भवन आदि गुरुकुल के नाम पर ही पंजीकृत है और गुरुकुल समिति का पूर्ण स्वामित्व है। यहां भवनों की संख्या 34 है। चारदिवारी से घिरे हुए गुरुकुल के सुरक्षित परिसर में छात्राओं के व्यायाम, भ्रमणादि के लिए विशाल मैदान है, जो विविध प्रकार के औषधीय पेड़-पौधों से सज्जितहै। प्राकृतिक वातावरण के बीच विशाल यज्ञशाला है, जिसमें प्रात:–सायं दोनों समय वैदिक मन्त्रों के मधुर उच्चारण व स्वाहाकार की ध्वनि के साथ रोगनाशक व पुष्टिकारक आुर्वैदिक ओषधि तथा देशी गाय के घृत की आहुति से अग्निहोत्र देवयज्ञ होता है| यज्ञ अग्निहोत्र गुरुकुल के परिसर को सात्विक, शुद्ध व सुगन्धयुक्त बनाने में तथा इदन्न मम की भावना से ओतप्रोत करने में समर्थ है। आवास, भोजन, पठन-पाठन की समुचित व्यवस्था गुरुकुल में है| गुरुकुल का अतीत स्वर्णिम है।

   गुरुकुल की पूर्व आचार्या डॉ. सुश्री धारणा याज्ञिकी थी और वर्तमान प्राचार्या डॉ. सुश्री सूर्या देवी चतुर्वेदा हैं| दोनों बहनें नैष्ठिक ब्रह्मचारिणियां रहकर गुरुकुल की अनवरत सेवा कर रही हैं जो जीवन समर्पण का अनुपम, अप्रतिम उदाहरण है।

वेद के आदेश और अनुभवी शिक्षाविज्ञों के अनुभव के अनुसार राष्ट्र में बालक-बालिकाओं की शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए। एक महान् शिक्षाशास्त्री के वचन हैं—“इसमें राजनियम और जातिनियम होना चाहिए कि पाँचवें अथवा आठवें वर्ष से आगे कोई अपने लड़कों और लड़कियों को घर में न रख सके, गुरुकुल पाठशाला में अवश्य भेज देवें। जो न भेजे वह दण्डनीय हो ।” जब बालक या बालिका गुरुकुल, विद्यालय या पाठशाला में विद्या पढ़ने आचार्य या आचार्या के पास जाते हैं, तब आचार्य या आचार्या उनका उपनयन संस्कार करते हैं।

   यह आशा की जाती है कि गुरुकुल की छात्रायें विदुषियां भविष्य में सुलभा, गार्गी, अपाला, घोषा, विश्ववारा, सूर्यासावित्री आदि एवं सीता, लक्ष्मीबाई, पन्नाधाय, जीजाबाई आदि जैसी ब्रह्मवादिनी और कर्तव्यनिष्ठ महिलाएं बनकर राष्ट्र का गौरव बने|