कोरोना विषाणु का वेद, यज्ञ और आयुर्वेद से बचाव


वेद में विषाणु (virus) को ‘यातुधन’ कहा गया है, जो शरीर को प्राप्त करके मारता है। अथर्ववेद में कहा गया है कि यज्ञ-अनिहोत्र धुम्र से ये नष्ट होते हैं। वेदों में इन्हें भूत, पिशाच, पिशितम् राक्षस, असुर आदि नामों से सम्बोधित किया है।

जानकारी के अनुसार *कोरोना विषाणु* से ग्रसित अधिकतर लोगों की मृत्यु श्वास-प्रश्वास के अंतराल के छोटा होने से होती है (*Shortness of Breath*)| स्वांस अंतराल छोटा होने से स्वांस गहरा नहीं होगा और शरीर की सभी कोशिकाओं तक शुद्ध वायु और प्राण-ऊर्जा, प्राण-तत्व का संचार नहीं हो पाता और और शीघ्र ही प्राण पखेरू उड़ जाते हैं|

तो जिस व्यक्ति की प्राण ऊर्जा बलिष्ट, शक्तिशाली होगी वो इन विषाणुओं से युद्ध में पराजित नहीं होगा| वृद्ध व्यक्तियों की प्राण-शक्ति मंद पड़ जाती है, इसलिए उनकी मृत्यु दर इस विषाणु से अधिक है, अन्य कई ठीक हो गए| तो सारांश यह निकला कि कि हमें अपनी *प्राण-शक्ति* (प्राण-तत्व) को अधिक सामर्थ्यशील बनाना चाहिए|

इसका सीधा उपाय है *प्राणायाम* अर्थात प्राण का आयाम| यह सामान्य बुद्धि वाला भी जानता है कि जिस अंग का विधिवत आयाम (व्यायाम) किया जाता है, वो अंग बलवान बन जाता है समय आने पर बाहरी आक्रमणों को झेल लेता है| प्राणायाम यानी ऋषियों द्वारा प्रदत *योग* की शिक्षा का चौथा अध्याय| तो आइये योग-प्राणायाम से जुड़ें और स्वस्थ रहें| इससे दीर्घजीवन की सम्भावनाएं भी बढ़ती हैं।

टिप्पणी: श्वास  नाक से ही लेना चाहिए, मुंह से नहीं|


करना है तो  नमस्ते करो,

शेक हैंड मत “#करोना”

भोजन तो शाकाहारी करो ,

मांसाहार मत ” #करोना”

तुलसी का सेवन नित करो,

धूम्रपान मत ” #करोना”

नीम गिलोय का घूंट भरो

मदिरा पान मत ” #करोना*

देशी भोजन फलाहार करो,

फ़ास्ट फ़ूड मत ” #करोना”

नित्य गोघृत से यज्ञ करो,

कहीं प्रदूषण मत ” #करोना*

शव का अग्नि संस्कार ही करो,

लाश दफन मत ” #करोना*


कोरोना को हराएँ, देश विश्व बचाएँ, भीड़ भाड़ से दूर रहें, सुरक्षित रहें।

बाहर का खाना करें बन्द ,घर की दाल रोटी खाएँ प्रभु के गुण गाएँ|

अभी  बाहर नहीं जा सकते तो अपने अन्दर जाने का सुअवसर है |

As you can not go outside, Go Inside of self|


कुछ आयुर्वेदिक औषधियाँ जो रोग-प्रतिरोधक क्षमता का विकास करती है और विषाणुओं के प्रकोप को रोकने में सहायक होती हैं|

1. स्वर्णमालती रस
2. महालक्ष्मी विलास रस