प्राचार्या

   गुरुकुल की वर्तमान प्राचार्या आचार्या डॉ. सुश्री सूर्या देवी चतुर्वेदा हैं|

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   गुरुकुल की प्राचार्या आचार्या डॉ0 सूर्या देवी चतुर्वेदा जी देश एवं विश्व की वेद, व्याकरण आदि की शीर्ष विदुषी आचार्या व महिला हैं। वेद, आर्य समाज और स्वामी महर्षि दयानन्द सरस्वती पर किये जाने वाले आरोपों का उत्तर देने वाली स्वनामधन्या, आधुनिक ऋषिका हैं, गार्गीरूपा हैं। आपने अनेक ग्रन्थों की रचना एवं सम्पादन किया है। श्रीमती चन्द्रावती कन्या गुरुकुल संस्कृत विद्यापीठ कासगंज की स्थापना की है।वर्षों पूर्व एक बार आपने शंकराचार्य जी को उनकी वेद विरोधी सतीप्रथा मान्यता के लिये शास्त्रार्थ की चुनौती दी थी।स्वामी प्रकाशानन्द जी इटावा के साथ संस्कृत भाषा में शास्त्रार्थ किया।शास्त्रार्थ प्रसंग तो अनेक हैं। डॉ0 सूर्या जी लम्बे समय से आर्यसमाज व इसकी संस्थाओं में एक विदुषी देवी के रूप में व्याख्यानों के लिये आमंत्रित की जाती हैं। हमने अनेक अवसरों पर आपके ज्ञानवर्धक वेद आदि विषयों पर व्याख्यानों को सुना है। शिवगंज गुरुकुल से पूर्व आप पाणिनि कन्या महाविद्यालय, वाराणसी में भी आचार्या रही हैं।वहां ४१ वर्ष का लंबा स्वर्णिम समय व्यतीत किया हैं|आप वेद विदुषी आचार्या डॉ० प्रज्ञा देवी जी की प्रथम अन्तेवासिनी शिष्या हैं। आर्यसमाज को अपनी इस वेद विदुषी देवी पर गर्व है। हम आर्य कन्या गुरुकुल, शिवगंज की उन्नति एवं सफलता की कामना करते हैं।

।। उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।।  – पंचतन्त्र२/१३८।।

उद्यम से ही अंत में कार्य सफल होते हैं, ना कि मात्र मनोरथों से|
प्राचार्या जी का अथाह उद्यम हम सब के लिए आदर्श प्रेरणा स्त्रोत है|

   ब्रह्मवादिनी के भाव से आपनेअपने जीवन के उद्यम भरे लगभग 41 वर्ष पाणिनि कन्या गुरुकुल, वाराणसी में बिताये| आपका जीवन अत्यंत संघर्षशील रहा| आचार्या डॉ० प्रज्ञा देवी जी ने प्रवेश करते ही आपसे व्रत ले लिया था और कहा था कि नए घरौंदे नहीं बनाने हैं, जो पाणिनि कन्या महाविद्यालय, वाराणसी चल रहा है उसे ही चलाना है और आर्ष विद्या का उत्कृष्ट केंद्र के रूप में स्थापित करना है| उस व्रत का आपने पूर्ण निष्ठा और गरिमा से परिपालन किया और एक आदर्श अन्तेवासिनी शिष्या का परिचय दिया जो अन्यों के लिए पवित्र प्रेरणा का अबाध स्त्रोत बना| सन् 1969 में वहां प्रवेश लेनेके समय गुरुकुल का कोई भी भवन नहीं था । भवनों का निर्माण अपने गुरुजी के साथ किया। गिट्टियां, रोड़ियां सब कूटीं । प्रतिवर्ष एक-एक प्रकोष्ठ बना, उसमें  अध्ययन भी चलता रहा । अध्ययन के साथ सभी कार्य सेवाभाव से करती रही। 2010 तक वहां सेवा देने के पश्चात् आप गुरुकुल शिवगंज आकर यहाँ का संचालन कुशलता पूर्वक करने लग गई| सिद्धांतों का हनन ना हो, ऐसी आपकी जीवनशैली रही है|

    व्याकरणाचार्य, शास्त्रार्थ में अजेय,चारों वेदों की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् आपको चतुर्वेदा उपाधि से विभूषित किया गया|