प्राचार्या सन्देश

   गुरुकुल शिक्षा पद्धति व्यक्ति के अज्ञान, दुराग्रह, अहं व दंभ को दूरकर उसकी सुप्त प्रतिभा को जागृत कर ज्ञान-विज्ञान के द्वार खोलकर उसका चहुँमुखी विकास करती है। गुरुकुलीय शिक्षा मानव में विनम्रता, सच्चरित्रता, साहस, स्वाभिमान, लक्ष्य के प्रति दृढ़ता, राष्ट्र के प्रति गौरव, कर्तव्य के प्रति सजगता, सहिष्णुता, करुणा, दया, प्रेम, सेवा व सद्भाव आदि मौलिक गुणों का विकास करती है।

   गुरुकुल शिक्षा आधुनिक युग में उस अनुपम निधि के समान है , जिसकी द्युति से परिवार, समाज, राष्ट्र व विश्व चमत्कृत होता है | संस्कारों व अनुशासन की भट्ठी मे छात्र कुंदन की तरह तैयार होकर समाज- व्यवस्था मे अपने दिव्य गुण स्वावलम्बन व स्वाभिमान की नींव रखता है |
आधुनिक युग भौतिकवादी है , इसमें नित बढ़ते आपराधिक मामले, नृशंश हत्याएं , नशाखोरी , भ्रष्टाचार व अपने कर्तव्यों के प्रति विमुखता की गर्म हवाएं प्रखर रूप में प्रवाहमान हो रही हैं| ऐसे में छात्रों की रक्षा हेतु गुरुकुल शिक्षा पदधति ही ‘रक्षा – कवच ‘ है | किसी भी राष्ट्र के भविष्य निर्माता अगर सच्चे गुरुजन हैं तो उनके आदर्शों को समाज में फलीभूत करने का पूरा श्रये इन युवाओं को है | युवा ही प्रत्येक राष्ट्र के ‘कर्णधार’ होते हैं | इनके बाजुओं में ही आमूल-चूक परिवर्तन की क्षमता सन्निहित होती है | अवार्चीन युग में द्रुत गति से शिक्षा का स्वरूप रूपांतरित हुआ है | इस प्रतियोगिता के दौर में गुरुकुलीय शिक्षा को अद्धतन करते हुए छात्रों का सर्वांगीण विकास हो रहा है | अवार्चीन व प्राचीन शिक्षा का अनूठा समिश्रण जहाँ एक ओर छात्रों में माता – पिता की सेवा , गुरुजनो का आदर, राष्ट्र के प्रति अनुराग, संस्कृति का पोषण , परहित चिंतन जैसे अनुपम गुणों का सतत विकास करती है, वहीँ दूसरी ओर आधुनिक शिक्षा के प्रारूप को आत्मसात करती हुई छात्र को ‘प्रतियोगी युग ‘ में अग्रणीय भी बनाती है

   संस्कारित शिक्षा की संभावनाओं के लिए सुयोग्य पथ की इच्छा अनेक समस्याओं के समाधान को संभव बनाता है। मैं इसी विश्वास को लेकर अग्रसर हूँ। शिक्षा के क्षेत्र में उच्च जीवन मूल्यों, महत्वाकांक्षाओं, आस्थाओं तथा संकल्पों का होना अनिवार्य है। जब हम सार्वजनिक जीवन में उतरते हैं, तो सपने एकल नहीं, बल्कि सामाजिक हो जाते हैं। जब हम इस बात को जीवन में आत्मसात् कर आगे बढ़ते हैं, तो चुनौतियाँ आसान हो जाती हैं।

   आज गुरुकुल में शिक्षा मध्य वेदवेदांग आदि अध्यापन, संगीत प्रशिक्षण, गृहकला शिक्षण, शस्त्रास्त्र संचालन, गोशाला, संस्कृत शिविर, गुरुकुल त्रिवेणी मासिक पत्रिका प्रकाशन, कम्प्यूटर संगणक प्रशिक्षण, गणित शिक्षण, गोशाला,  कृषि व समाज सेवा और जन जागरण आदि के क्षेत्र में अनेक प्रकल्प चल रहे हैं।

   गुरुकुल में जो उन्नति और विकास दिखाई दे रहा है, उसके पीछे गुरुकुल के संरक्षक, शिक्षक/ शिक्षिकागण व कर्मचारियों की श्रम साधना, पुरुषार्थ व संकल्प शक्ति है।

   वर्तमान परिप्रेक्ष्य में गुरुकुल-शिक्षा ही बालक-बालिका के निर्माण की सम्यक कार्यशाला है|
गुरुकुल की यह भी अपेक्षा है कि केन्द्र व राज्य सरकारें महर्षि दयानन्द प्रणीत आर्ष शिक्षा प्रणाली को मान्यता प्रदान करें एवं गुरुकुलों का आर्थिक पोषण करें। यह भी अपेक्षा की जाती है कि सरकार का कोई भी मानक आर्ष शिक्षा प्रणाली के अध्ययन-अध्यापन में बाधक न बनें।