प्रेरणा स्त्रोत


ऋषि दयानन्द सरस्वती (12 February 1824 – 30 October 1883) ने अपने गुरु विरजानन्द दण्डी से दीक्षा लेने के पश्चात पराधीन भारत में स्त्री शिक्षा पर सबसे अधिक बल दिया था। उन्होंने स्त्रियों को वेदाध्ययन का अधिकार दिया। ऋषि दयानन्द के बाद स्वामी श्रद्धानन्द जी ने भी स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया। जालन्धर के कन्या महाविद्यालय की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। इसके बाद ऋषि भक्तों ने एवं आर्य विदुषी देवियों ने कन्या गुरुकुलों की स्थापनायें की हैं। हमारा अनुमान है कि आचार्य रामदेव जी द्वारा देहरादून में स्थापित कन्या गुरुकुल देश के सभी कन्या गुरुकुलों में एक प्राचीन गुरुकुल है। इसके बाद आर्यजजगत् के प्रसिद्ध ऋषिभक्त विद्वान पं0 ब्रह्मदत्त जिज्ञासु जी की शिष्या वेदविदुषी डॉ0 प्रज्ञादेवी जी ने वाराणसी में पाणिनि कन्या गुरुकुल महाविद्यालय की स्थापना की, जिससे सभी परिचित हैं। इस गूरुकुल ने समाज को अनेक विदुषियां प्रदान की हैं। आचार्या डॉ॰ सूर्या देवी चतुर्वेदा, आचार्या डॉ॰ धारणा याज्ञिकी पाणिनि विद्यालय की प्रतिमान एवं वेद विदुषी डॉ0 प्रज्ञादेवी जी की प्रखर ब्रह्मचारिणियां हैं। पाणिनि कन्या से अतिरिक्त भी देश में बड़ी संख्या में कन्या गुरुकुल कार्यरत हैं।

शिवगंज गुरुकुल के लिए स्व. स्वामी सुकर्मानन्द सरस्वती जी प्रेरक एवं पथ प्रदर्शक रहे| स्वामी चेतनानन्द जी की प्रेरणा से प्रेरित हो कर गुरुकुल परम्परा के लिए स्व. स्वामी सुकर्मानन्द  जी ने गुरुकुल के लिए भूमि दान दी और इस विशाल गुरुकुलीय वटवृक्ष का बीज बोया जिसका प्रकाश चहुँ दिशाओं में फ़ैल रहा है।