यज्ञशाला


प्राकृतिक वातावरण के बीच विशाल यज्ञशाला है, जिसमें प्रात:–सायं दोनों समय वैदिक मन्त्रों के मधुर उच्चारण व स्वाहाकार की ध्वनि के साथ रोगनाशक व पुष्टिकारक आुर्वैदिक ओषधि तथा देशी गाय के घृत की आहुति से अग्निहोत्र देवयज्ञ, प्रवचन, वेदपाठ होता है|  यज्ञ अग्निहोत्र गुरुकुल के परिसर को सात्विक, शुद्ध व सुगन्धयुक्त बनाने में तथा इदन्न मम की भावना से ओतप्रोत करने में समर्थ है| समय समय पर विशेष अनुष्ठान एवं वैदिक सत्संग होता है|

          अतिथि यजमानों के जन्मदिवस, विवाह की वर्षगांठ व अन्य मांगलिक कार्य हवन यज्ञ द्वारा यज्ञशाला में संपन्न होते हैं| शुद्ध वैदिक और ऋषीप्रणीत परम्परा के अनुसार पुरुष स्त्री कोई भीयज्ञ का ब्रह्मा बन सकता है|

हवन में यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करके बैठने का विधान है| यज्ञोपवीत धारण करने का मंत्र निम्न है|

यज्ञोपवीतं परमं पवित्रंप्रजापतेर्यत्सहजंपुरस्तात् ।

आयुष्यमग्र्यंप्रतिमुंचशुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेज: ।

यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्यत्वा यज्ञोपवीतेनोपनह्यामि ।

     – पारस्करगृह्यसूत्र २ – २ – ११||