शिक्षण विषय


गुरु शिष्य की अध्ययन से पूर्व सम्मिलित प्रार्थना की परम्परा गुरुकुलों की परम्परा रही है| वह प्रार्थना है-

     ओ३म् सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै ।तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।।

– तैत्तिरीय आरण्यक ९/१।।

अर्थात : परमेश्वर हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें, हम दोनों को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए, हम दोनों एकसाथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें, हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो, हम दोनों परस्पर द्वेष न करें। उक्त तरह की भावना रखने वाले का मन निर्मल रहता है। निर्मल मन से निर्मल भविष्य का उदय होता है।

यहाँ आर्ष ग्रंथों का अध्ययन- अध्यापन होता है| सम्बंधित शंकाओं का यथोचित समाधान किया जाता हैl
आर्ष ग्रंथों के अध्ययन हेतु प्रत्येक प्रकार की और हर स्तर की शिक्षा का माध्यम हिन्दी / संकृत है। शिक्षा का स्तर अत्यन्त उच्च है। वेद वैदिक वाङ्मय एवं महर्षि दयानन्द के ग्रन्थों व सिद्धान्तों का विशेष अध्ययन होता है|

 गुरुकुल में ऋषि मुनियों के ग्रन्थों की पढ़ाई होती है।

वेद, संस्कृत, व्याकरण महाभाष्य आदि ६ वेदांग, ४ उपवेद, ६ दर्शन, ११ उपनिषद्, स्मृति, ब्राह्मण ग्रन्थ, ऐतरेय आदि आरण्यक आर्ष ग्रन्थ पढ़ाये जाते हैं।

आधुनकि ग्रन्थों में हिन्दी, संस्कृत साहित्य, समाजशास्त्र, इतिहास, भूगोल, सामान्य  ज्ञान, गणित आदि भी यथोचित पढ़ाये जाते हैं।

आंग्ल (अंग्रेजी) भाषा शास्त्री (BA स्नातक) तक पढ़ायी जाती है।

गणित केवल कक्षा १२ तक पढ़ाया जाता है।

१६ संस्कार कराना सिखाया जाता  है।

गृहविज्ञान = भोजन निर्माण, वस्त्र सिलना, संयाव, स्वेटर बनाना, अचार आदि बनाने का भी प्रशिक्षण होता है।

अध्यात्म विषय में सन्ध्या, यज्ञ, प्राणायाम अनिवार्य रूप से सिखाये जाते हैं।

.  आत्म रक्षा हेतु शस्त्र संचालन, व्यायाम, लाठी, भाला, तलवार, कराँटे, शूटिंग आदि का भी प्रशिक्षण होता है।

१०. अहर्निश व्यवहार में संस्कृत बोलना अनिवार्य है।

११. प्रतिमास किसी एक रविवार को वाग्वर्धिनी सभा होती है, इसमें सभी को भाग लेना आवश्यक है।

गुरुकुल के विशिष्ठ पाठ्यग्रन्थ निम्न कड़ी के माध्यम से देखें|


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